विज्ञान, तकनीक और कौशल मातृभाषा में पढ़ाए जाने पर मंथन
तकनीकी और कौशल शिक्षा की परिवर्तनकारी गतिशीलता पर मंगलवार को श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय और विज्ञान भारती के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञों ने 50 भी अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किए। तकनीक, विज्ञान और कौशल जगत की विभूतियों ने इन विषयों को मातृभाषा में विकसित करने और पढ़ाने पर रणनीति तय की। उद्घाटन सत्र के मुख्यातिथि एवं विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. शिव कुमार ने कहा कि कौशल विद्वता का प्रामणीकरण करता है। जिस भाषा में कौशल को समझने की सिद्धता है, उसी में उस कौशल को पढ़ाए जाने से मौलिकता आएगी। इसलिए हमें कौशल, तकनीक और विज्ञान को मातृभाषा में पढ़ाना चाहिए। समापन सत्र के मुख्यातिथि एवं मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्य अधिकारी डॉ. राज नेहरू ने कहा कि तकनीकी और कौशल शिक्षा देश व समाज के उत्थान में उपयोगी होनी चाहिए। हमारे पेटेंट सामाजिक और आर्थिकी को बदलने में सक्षम होने चाहिएं। यदि परिवर्तनकारी गतिशीलता हमारे व्यवहार में नहीं आएगी तो कौशल विकास संभव नहीं होगा। डॉ. राज नेहरू ने कहा कि देश की इकोनॉमी के विकास में इनोवेशन, स्टार्टअप और पेटेंट की बड़ी भूमिका है। इसमें विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को अपना योगदान देना होगा। सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर दिनेश कुमार ने कहा कि कौशल, तकनीक और विज्ञान को अपनी मातृभाषा में पढ़ाएंगे तो और श्रेष्ठ परिणाम सामने आएंगे। जापान, जर्मनी, फ़्रांस और रूस जैसे देश इसका बहुत बड़ा जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। कुलगुरु प्रोफसर दिनेश कुमार ने आह्वान किया कि सभी विषय विशेषज्ञ कौशल, तकनीक और विज्ञान की पाठ्य सामग्री अपनी मातृभाषा में विकसित करें, तभी यह अभियान सफल होगा। भविष्य में सेमी कंडक्टर कस फील्ड में बड़ी क्रांति आने वाली है। हम अपने युवाओं को उसके लिए तैयार करें। कुलगुरु प्रोफेसर दिनेश कुमार ने कहा कि जब हम सपने हिन्दी में देखते हैं तो उनको साकार करने के लिए अध्ययन भी हिंदी में आवश्यक है। राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सीसी त्रिपाठी ने कहा कि हमें व्यवसाययुक्त शिक्षा से विद्यार्थियों को तैयार करना होगा। प्रभावी परिणामों के लिए कौशल शिक्षा में मातृभाषा का होना नितांत आवश्यक है। प्रोफेसर सीसी त्रिपाठी ने कहा कि अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण स्वयं करके ही हम विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आईयूएसी के निदेशक अविनाश पांडे विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा कि स्वदेशी ज्ञान और स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहन अत्यंत आवश्यक है। अतीत में भारतीय ज्ञान-कौशल की घोर उपेक्षा हुई है। हमें अपने ज्ञान और भाषा कौशल के साथ तकनीक, शोध, उद्यमिता को बढ़ावा देना होगा। जेसी बोस विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर राजीव कुमार ने कौशल को शिक्षा में समन्वित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि युवा वर्ग नई सोच से आगे बढ़ रहा है। श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय ने कौशल विकास में अहम भूमिका निभाई है। दिल्ली उद्यमिता एवं कौशल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक कुमार नागावत ने कौशल, तकनीक, शिक्षा और इंडस्ट्री में तेजी से हो रहे परिवर्तनों और उनके लिए तैयार रहने को आगाह किया। उन्होंने कहा कि यदि हमने एआई के इस दौर में स्वयं को तैयार नहीं किया तो हमारे ऊपर अप्रासंगिकता का खतरा मंडरा रहा है। वेब टेक्नोलॉजी के आने से भौगोलिक बाधाएं टूट चुकी हैं। हमें तकनीक के ज्ञान को आत्मसात करते हुए स्वयं को संवर्धित करना होगा। अंत में कुलगुरु प्रोफेसर दिनेश कुमार ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। शोध पत्र प्रस्तुत करने वालों को अतिथियों ने प्रमणपत्र प्रदन किए। कुलसचिव प्रोफेसर ज्योति राणा ने अतिथियों का स्वागत किया। अकादमिक अधिष्ठाता एवं सम्मेलन के संयोजक प्रोफेसर विक्रम सिंह ने अतिथियों का आभार ज्ञापित किया। इससे पूर्व सम्मेलन के संयोजक प्रोफेसर आर एस राठौड़ ने इस आयोजन की सार्थकता और आवश्यकता पर प्रकाश डाला। विज्ञान भारती के प्रदेशाध्यक्ष प्रोफेसर सतहंस ने इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला के उद्देश्यों पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। प्रोफेसर रंजन माहेश्वरी, प्रोफेसर कुलवंत सिंह, प्रोफेसर डीवी पाठक और डॉ. सविता शर्मा ने सत्रों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। ग्रीन टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. सुनील गर्ग ने नवंबर में होने वाले सम्मेलन के पोस्टर का विमोचन करवाया। प्रियम श्योराण एवं डॉ. कल्पना माहेश्वरी ने मंच संचालन किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अकादमिक जगत की हस्तियां मौजूद रहीं।
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